बिता अषाढ़,
सावन है आया ।
हरियाली, धरती पर छाया ॥
मेघा बरसे, धीमे व जोर ।
काले बादल, कर रहे शोर ॥
कभी रिम-झिम, रिम-झिम, सी फुहार ।
मन मे जगाये, देखो प्यार ॥
बिरहन के दिल में, उठ रहा पीर ।
मन तो हुआ, जा रहा अधीर ॥
गिरती बूंद, लगता है शोले ।
मोर मस्त, होकर के बोले ॥
जोड़े तो हो रहे, प्रसन्न ।
पर दुःखी हो रहे, हैं बिरहन ॥
सुरज छुपा हुआ, बादल में ।
चाँद न दिखता, देखो गगन में ॥
आकाश धरा के, बीच में बादल ।
धरती का मन, हुआ है पागल ॥
बिता अषाढ़,
सावन है आया ।
हरियाली, धरती पर छाया ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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26-07-2013,friday,10:30pm,
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