तुम्हे खिलता हुआ, गुलाब कहूं ।
या मै छलका हुआ, शराब कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
तुम्हे पिघला हुआ मै, मोम कहूं ।
या चांदनी रात की, चकोर कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
तुम्हें रिमझिम सा, बरसता हुआ,बरसात कहूं ।
या मै पूनम की तुम्हें, रात कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
तुम्हे जलता हुआ, मै आग कहूं ।
या वीणा की कोई, राग कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
आई मौशम मे, तुम्हे बहार कहूं ।
या तो फूलों की, झुकती डार कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ, गुलाब कहूं ।
या मै छलका हुआ, शराब कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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15-06-2013,11.15
am,saturday,
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pune-bilaspur express train