मै हूं एक बेरोजगार
मुझे चाहिए काम का अधिकार
ये कैसी बेरोजगारी
मजबूरी मे बने भिखारी
मेरी भी थी एक चाह
कि मै बनूं एक अधिकारी
पर मेरे भाग्य मे लिखा था
होना एक भिखारी
मै जाता रोजगार पाने
लोग करते बहुत बहाने
कहते मेरे पास नही है काम
मै सोचता क्या करु राम
हाय ये गरीबी
मुझको लेके डुबी
सभी हो गए बेगाने
मै क्या कहूं फ़साने
मै कोसता अपने भाग्य को
धिक्कारता उस राज्य को
कि क्यों मैने जन्म लिया
किसी के लिए कुछ न किया
मेरे मां -बाप ने पढ़ाया
मै उनके काम न आया
उनके भी रहे होगे अरमान
मेरा बेटा बनेगा महान
अब मै जिन्दगी से हारा
मेरा कोई नही सहारा
मै हूं इन अभागे बच्चो का बाप
मै इनसे कर रहा पाप
इनकी शिक्षा-दीक्षा
इनके खाने की ईच्छा
मै इनके भर न सका पेट
कैसे करूं आज इनसे भेंट
मै आज भूख से हुआ बेहाल
वे भी मुझसे करेंगे सवाल
कि पापा आज क्या-क्या लाए
हम आज कुछ भी न खाए
मै आज उनसे क्या बोलूंगा
आज जी भर के रो लूंगा
मै उन्हे लोरिया सुनाउंगा
अपने नन्हे-मुन्नो को सुलाउंगा
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२७/४/१९९१ शनिवार,
एन.टी.पी.सी. दादरी ,गाजियाबाद (उ.प्र.)
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