रो रहा है खादी आज दर्द से,
बदनामी के नामो से !
खो रहा है अपनी आज ये ईज्जत,
उनके झूठे पहिनावे से !!
याद आ रहे इसे है गांधी,
पटेल, शास्त्री, सावरकर !
उनके जमाने मे मिलता था,
ढेरों इसको आदर !!
पर आज की खादी होती जा रही है,
भ्रष्टाचार की परिचायक !
जिसे आज पहन कर लूट रहे देश को,
साधू-नेता या नायक !!
आज जहां-जहां है खादी,
वहां-वहां भ्रष्टाचार भी है !
जिस विभाग मे नही है खादी,
वहां सत्य के कुछ आसार है !!
दिल है खादी,जान है खादी,
खादी सत्य का पर्याय है !
त्याग भरा हो जीवन मे,
इसका यही बस आय है !!
खादी ओढ़ो ,बिछावो खादी,
खादी पहनों अच्छे से अच्छा !
पर इसे पहनने के पहले,
ये दिल तो हमारा हो सच्चा !
पर इसे पहनने के पहले,
ये दिल तो हमारा हो सच्चा !
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१०/१०/२००४,रविवार,रात्रि ०.५५ बजे,
चिन्चभुवन,नागपुर(महाराष्ट्र)
No comments:
Post a Comment