इस आज हम सब इकट्ठा हुए इस जगह
खुशी का कोई ठिकाना नही!
मै भी इनकी खुशी मे मदमस्त हू
चाहे सबको मेरा नागवारा सही!!
इतने दिन से तमन्ना कितनी थी मेरी,
मै भी पाने की कोशिश करता रहा!
पर मेरे भाग्य मे ऐसा कहा था बदा
जिन्दगी भर उसी पर मै मरता रहा!!
आज तक मैने सोचा जो वो पाया नही
यह मेरी बदनसीबी का बुरा खेल है!
मै चुन-चुन के झोपड़ को बनाता रहू
पहले झोपड़ तो बाद मे जेल है!!
आज मेरा मुकाद्दर मुझसे रूठा हुआ
कल जो हे मेरे आज बेगाने हुए!
मै इतने दिनो से उन्हे पहचाना नही
मै दिए उन्हे फ़ूल वो मुझे काटे दिए!!
मेरा किसी से कोई शिकायत नही
जानता था मै इक दिन ऐसा ही होगा!
मै किसी को कैसे दोष दू साथियो
मेरे आलस का शायद ये फ़ल मिला होगा!!
मैने अब तक किया सबका अच्छा मगर
मुझको अच्छाई के बदले बुराई मिला!
फ़िर भी मेरा ये दिल मानता है नही
किस तरह मै कहू बात का सिलसिला!!
इतने दिन से तमन्ना ...
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-२९/६/१९९१ ,शनिवार,रात्रि १०.२० बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी गाजियाबाद (उ.प्र.)